1 अप्रैल क्यों है उड़ीसा के लिए खास? जानिए क्या है उत्कल दिवस ?

 1 अप्रैल : ओडिशा दिवस

1 अप्रैल को पूरे ओडिशा में त्यौहार जैसा माहौल होता है, क्योंकि इस दिन ओडीशा में ओडीशा दिवस मनाया जाता है, कुछ लोग इसे उत्कल दिवस भी कहते हैं। इस दिन को ओडिशा राज्य के एक अलग प्रांत के रूप में गठन के लिए याद किया जाता है। यह ओडिशा के प्रत्येक निवासी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने और अपनी विशिष्ट पहचान का जश्न मनाने का अवसर देता है। ब्रिटिश शासन में ओडिशा बंगाल प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा था, फिर 1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा का भाषाई आधार पर एक राजनीतिक रूप से अलग राज्य का गठन किया गया। इस साल 2024 में 1 अप्रैल के दिन ओडिशा अपना 89 वां स्थापना दिवस मनाएगा।

उड़ीसा दिवस कैसे मनाया जाता है

इस दिन खूबसूरत झाकियां निकलती है, बहुत सारी प्रतियोगिताएं होती हैं, गीत-संगीत जैसे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। ओडिसा में शानदार आतिशबाजी होती है।  

उत्कल दिवस क्यों मनाया जाता है?

उत्कल दिवस ओडिशा राज्य की एक अलग राजनीतिक पहचान हासिल करने के दिवस के रूप में मनाया जाता है। निवासियों के बीच एकता की भावना को प्रोत्साहन देना उत्कल दिवस मनाने का एक बड़ा कारण है।ओडिशा का गठन उड़िया लोगों के वर्षों के संघर्ष और असंख्य बलिदानों का परिणाम था। उत्कल दिवस इन संघर्षों को याद करने और उन लोगों को श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने ओडिशा के लोगों के लिए एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी।

ओडिशा राज्य से जुडे महत्वपूर्ण तथ्य

ओडिशा राज्य में वर्तमान में 30 ज़िले हैं। क्षेत्रफल के अनुसार यह देश का 8वां और जनसंख्या के अनुसार 11वां सबसे बड़ा राज्य है। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर है। आदिवासियों की जनसंख्या के मामले में ओडिशा भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। भारतीय संसद द्वारा 9 नवंबर 2010 को उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा रख दिया गया। ओडिशा को भगवान जगन्नाथ की भूमि भी कहा जाता है। 

ओडिसा के अन्य नाम

प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओड़िशा राज्य को कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि नामों से जाना जाता था।

ओडिशा (उत्कल दिवस) का इतिहास / ओडिसा दिवस की शुरुआत

 आजादी से पहले ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ओडिशा बंगाल प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा था। तीन सदियों के लंबे संघर्ष के बाद 1 अप्रैल 1936 को राज्य बंगाल और बिहार प्रांत से अलग हो गया था। ऐसा माना जाता है कि ओडिशा की खोई हुई पहचान को पुनः प्राप्त करने का संघर्ष उत्कल सम्मिलनी द्वारा शुरू किया गया था। एक अलग राज्य के रूप में विकसित होने के बाद, ओडिशा में केवल छह जिले शामिल थे।आज़ादी के बाद ओडिशा और आस- पास की रियासतों ने नई नवेली भारत सरकार को अपनी सत्ता सौंप दी थी। ओडिशा राज्य की एक अलग ब्रिटिश भारत प्रांत के रूप में स्थापना की गई थी।

ओडिसा के इतिहास के महत्त्वपूर्ण तथ्यों की झलक 

3 वीं सदी ईसा पूर्व में, क्षेत्र शक्तिशाली सम्राट अशोक द्वारा शासित था, जिसे उसकी धर्मांतरण और उसके भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म को फैलाने में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, क्षेत्र विभिन्न राजवंशों के अधीन आया, जिसमें सातवाहन, इक्ष्वाकु, और महामेघवाहन राजवंश के खरवेला जैसे नाम शामिल हैं।

मध्यकालीन काल के दौरान, ओडिशा को विभिन्न हिंदू राजवंशों द्वारा शासित किया गया था, जिसमें पूर्वी गंगा राजवंश शामिल था, जो संस्कृति और कला के विकास के एक दौर का संचालन करता था। राज्य भक्ति आंदोलन के फैलाव के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जिसमें जयदेव और रामानुज जैसे संत ने इस परंपरा के विकास में योगदान दिया।

16 वीं सदी में, ओडिशा मुगल साम्राज्य के अधीन आया, और बाद में ब्रिटिश पूर्व भारत कंपनी के अधीन आया। राज्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया, जिसमें उत्कल गौरव मधुसूदन दास, गोपबंधु दास और बिजु पटनायक जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में योगदान किया।

भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की थी, जिसके बाद ओडिशा उद्योग, कृषि और पर्यटन के लिए एक केंद्र के रूप में उभरा है। राज्य की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, जिसमें एक जीवंत कला और शिल्प परंपरा, प्राचीन मंदिर और पुरी में रथ यात्रा जैसे त्योहार देश भर और दुनिया भर से आगंतुकों को आकर्षित करते हैं।

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