ग्लोबल फूड वेस्टेज रिपोर्ट 2024

 ग्लोबल फूड वेस्टेज रिपोर्ट 2024

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 27 मार्च 2024 को ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024(खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट)’ जारी की है।  यह रिपोर्ट दुनिया भर में भोजन की बर्बादी का डेटा प्रस्तुत करती है। खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट भोजन की बर्बादी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सतत विकास लक्ष्य (SDG) 12.3, जिसका लक्ष्य 2030 तक विश्व खाद्य बर्बादी को आधा करना है, को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का एक प्रयास है। यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा तैयार तीसरी खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट है।

तीसरी खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएं

रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में दुनिया भर में खाने योग्य उपलब्ध अनुमानित 1.05 बिलियन मीट्रिक टन या 19 प्रतिशत भोजन कचरे में फेंक दिया जाता है । यह बर्बादी तब हो रही है  जब  दुनिया में 783 मिलियन लोग भूखे रहते हैं और मानवता के  एक तिहाई हिस्से को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। भारत में हर वर्ष करीब 6.88 करोड़ टन भोजन बर्बाद कर दिया जाता है।

वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की जो बर्बादी हो रही है उसका अधिकांश यानी 60 फीसदी घरों में बर्बाद हो रहा है। यदि घर-परिवार में बर्बाद हो रहे इस भोजन की कुल मात्रा को देखें तो वो करीब 631 मिलियन टन है। खाद्य सेवा क्षेत्र 290 मिलियन टन के लिए और खुदरा क्षेत्र 131 मिलियन टन के लिए जिम्मेदार था।वहीं यदि प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो एक व्यक्ति सालाना औसतन 79 किलोग्राम भोजन की बर्बादी के लिए जिम्मेवार है। जो दुनिया में भूख से जूझते हर व्यक्ति को प्रति दिन 1.3 खुराक भोजन प्रदान करने के लिए काफी है।एक ओर जहां दुनिया में 78.3 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं, वहीं हर दिन करीब 100 करोड़ खुराक के बराबर भोजन बर्बाद किया जा रहा है।

भोजन की हानि और अपशिष्ट से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसे विश्व ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8-10 प्रतिशत  होने का अनुमान है। ये विमानन क्षेत्र द्वारा उत्पन्न कुल उत्सर्जन का लगभग पांच  गुना है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी और औसत तापमान के बीच के संबंधों को भी उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक उन देशों में जहां जलवायु गर्म है वहां प्रति व्यक्ति ज्यादा भोजन बर्बाद होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां रेफ्रिजरेशन की कमी के कारण खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है।

रिपोर्ट के अनुसार मध्य-आय वाले देशों में, ग्रामीण आबादी शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम भोजन बर्बाद करती है।मध्यम आय वाले देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन की बर्बादी कम होती है क्योंकि गांव के लोग बचे हुए खाद्य पदार्थों को पालतू जानवरों को खिला देते है तथा खाद बनाने के लिए भी उपयोग में ले लेते हैं।

2022 तक चीन, नामीबिया, सिएरा लियोन और संयुक्त अरब अमीरात सहित केवल 21 देशों ने अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (एनडीसी) में भोजन की हानि और/या अपशिष्ट में कमी को शामिल किया है।

यह रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस से ठीक पहले जारी की गई है जो हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 2011 में पहली खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट जारी की थी ।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की स्थापना 1972 में की गई थी। UNEP अपने सदस्य देशों को सभी 17 SDG की उपलब्धि का समर्थन करते हुए जलवायु स्थिरता को बढ़ावा देने, प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने और प्रदूषण मुक्त भविष्य बनाने जैसे पर्यावरणीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का मुख्यालय नैरोबी,केन्या में है।

इतना ही नहीं इसकी वजह से जैवविविधता को भी भारी नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही यह कृषि क्षेत्र पर भी भारी दबाव डाल रहा है। अनुमान है कि खाद्य पदार्थों का जो नुकसान हो रहा है उसके लिए दुनिया की एक तिहाई कृषि भूमि का उपयोग किया गया था। इतना ही नहीं खाद्य पदार्थों की होती यह हानि और बर्बादी आर्थिक रूप से भी काफी महंगी पड़ रही है। इसकी वजह से एक लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है।

गौरतलब है कि मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए सतत विकास के 12.3वें लक्ष्य के तहत 2030 तक फुटकर और उपभोक्ता स्तर पर प्रति व्यक्ति वैश्विक खाद्य बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य रखा गया है, साथ ही इसका उद्देश्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में होने वाले खाद्य पदार्थों के नुकसान को भी कम करना है।

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